Thursday, September 08, 2011


                 प्रवाह
                     I
एक कुत्ते का बच्चा नाम था कालू
मनचला  गबरू जैसे छोटा भालू

रहता सड़क किनारे,  टूटे बोर्ड के नीचे
उसके बहन-भाई  चपलु-शालु

नटखट प्यारा चुलबुला जोशीला
शीला – चुलबुल से रंगीला कालू

संभाव से सबको छेड़ता हैं
खाने से ज़्यादा प्यार का भूका हैं

हर पल मैं अरमान हैं कितने
दुनिया मैं शक्श हैं जितने

यह बिना रीश्तों के प्यार दे रहा हैं
धूतकार सहकर फिर पीछे दौड़ रहा हैं

आ रहा हैं यूँ पीछे सबके
डुम हिलाकर कूद कूद के

नाकामियाबी पर बुलंद होता हैं
उत्साह उबलते दूध सा  हैं

कभी पैर चाट लेता हैं
कभी  कपड़े पकड़ लेता हैं

कभी  पैरों के बीच से निकल जाता हैं
फिर पैरों पर ही सो जाता हैं

माँ से सीखे थे प्यार के जो सारे नुस्के
बिना छल के दुनिया पर लूटा रहा  हैं

मेरा कालू मेरा भालू
जीवन का गीत गा रहा हैं

फिर चल देते जब खेल के लोग
फिर दो कदम पीछे चलता हैं

फिर  अहम का एहसास कहे या
वैराग्य,  अभिमान या ज्ञान

अपनी सीमाओं का
फिर नये केंद्र  ढूंढता हैं

फिर पूर्ण समर्पण करता हैं
गिर गिरकर जूड़ता हैं


यह टूकड़ो पर नही
प्यार पर पलता हैं

            II
वक़्त के बहाव मे
शायद सब बदल जाएगा

एक दिन यह कालू मेरा भालू
गुमसूँ  कालिया हो जाएगा

मानव की मानसिकता जान लेगा
अपनी  सीमाए बाँध लेगा  

ज्ञान उसके उत्साह मे
बाधक हो जाएगा

पहेला  लड़ेगा,  फिर रात को रोयेगा
फिर संवेदनहीनता मे संवेदनहीन हो जाएगा

देव से नर , नर से पशु हो जाएगा
यह कालू से कालिया हो जाएगा

वो कालिया जो बैठता है कार के नीचे
जिससे  बच्चे डरते हैं, कोई पास नही जाता

जो घुर्रटा हैं या मार ख़ाता हैं
प्यार की धूतकर नही ख़ाता

जो पलता है टूकड़ो मे
और जीत भी हैं टुकड़ों मे

जो बस लोगों को देखता है
अब महसूस नही करता

वो  कालिया जो
जीवन की  अनंत  संभावनाओ

से परे अपने कुछ
अनुभवों में सिमट गया हैं

या एक शब्द मे कहे तो
‘वयस्क’ हो गया हैं

ज़िंदगी को छोटा- छोटा कर
चलती  फिरती मौत हो गया हैं

मेरा नटखट कालू
बड़ा हो गया हैं

"भावों के बहाव को पलटना है
वक़्त के बहाव- प्रभाव को नही"