Wednesday, February 15, 2012



सुबह की तलाश में खो गयी रात मेरी
मुझे रोशनी की तलाश आज भी हैं


मैने की थी सूरज से वफ़ा
दिल मेरा खाक आज भी हैं


वो पूछते है मेरी उदासी का सबब
प्यार उमीदों का मोहताज आज भी है


मेरी ज़िंदगी मे मौत, मौत मे ज़िंदगी 
वजूद, ख्वाहिशों का पुतला आज भी है


उसने कहा जो हाथ पकड़ के
तुम्हारे आँखों मे हवस दिखती है


हममे भी लगा था
हम नीच वाक़ई है


हर आहट, आवाज़, नज़र, बू
छूने से सिहर उठता है


क्या इंसान मे
खुदा वाक़ई है


मैं क्या दूं सलाह 
मैं नादान इंसान


पढ़ लो मेरी आँखों मे
तेरा अक्स साफ ही है 


'हम आम इंसान है 'क़ायल' फलसफा न कह
घुट घुटकर जीते है जी जी कर घुटते है'

वो आए मैने आने दिया
वो गये मैने जाने दिया


उसको लगी जो ठण्ड
आप को जला दिया


उसको लगी जो गर्मी
आप को जमा दिया


उन्हें जो  लगी प्यास
पीने को लहू दिया


उन्हें जो लगी भूख  
खुद को परोस दिया   


उन्हें जो न आई नींद
ज़िन्दगी को कहानी किया




अब मेरे पास


न ठण्ड है न गर्मी है
न लहू है न जिस्म है


न नींद है न राज़ है
न अस्तित्व है न मान है


न ही मेरे पास हो तुम
जिससे मैंने सर्वस्व दिया 






कभी आया सावन यूँ भी
नदी ने पार किनारा किया


सावन का कसूर या नदी का
या उसका जिसने किनारा दिया  


अब सोचते हूँ तो यूँ लगता हैं
यह सौदा बड़ा महंगा किया!