Thursday, September 20, 2012

नक़ाब

यूँ शदीद ज़हन लिए फिरता है
आसमान का वज़न लिए फिरता है
(शदीद = violent)

एक तूफान है आँखों मे लिए
होठों पे मुस्कान लिए फिरता है

मसले जहाँ के अपने किरदार मे पिरोए
अब इसे फ़ितरत कहे फिरता है
(फ़ितरत = human nature)

खो गया उलझ गया है  कुछ इस तरह
अच्छाई को अब फरीब-ए-नज़र कहे फिरता है
(फरीब-ए-नज़र = illusion)

चाहता है हर कोई बस पल दो पल चैन
पर सुकून के मायनों पर जिरह किए फिरता है
(जिरह = debate)

हे खुदा, भगवान, येशू, इससे गले लगा ले
यह बहुत अकेला है, मेरा और मैं की लड़ाई मे
जैसे एक खाई है इसकी तन्हाई मे
खाई मे अपना ही वज़न लिए उतरता है
जिरह करता है हंसता है रोता है
क़ैद को अपनी फ़ितरत, फरीब ए नज़र करता है
मायने बनाता है, मायनों पर सवाल उठाता है
सवाल जवाब की खाई मे धस्ता जाता है
पागलों की तरह ठहाके लगता है
फिर सो जाता है थक के
क्यूंकी नींद मे खाई तो होती है
खाई का अंदाज़ा नही होता तन्हाई नही होती
होते है जज़्बात, और मायने भी
पर इन पर कोई सवाल नही होता जिरह नही होती
होता है हॉंसला की सुख दुख
इन्ही सपनो मे गुम जाएँगे
कुछ पल के लिए ही
हम सच्चाई से बच पाएँगे
पर सपना पानी के बुलबुले की तरह
कब तक रह पाता है सह पता है
अपनी उम्मीदों का दबाव
टूटती है नींद चौक्कर उठ जाता है

कुछ नूकों के दरमियाँ जैसे
एक बवंडर हुए फिरता है
(नूकों = points)

यह अपने ही ख़यालों के खंजारों से
अपने ज़हन को घायल किए फिरता है

यूँ शदीद ज़हन लिए फिरता है
आसमान का वज़न लिए फिरता है

एक तूफान है आँखों मे लिए
होठों पे मुस्कान लिए फिरता है

बस यहाँ तहज़ीबों का फ़र्क है 'कायल'
हर शक़्श कई 'नक़ाब' लिए फिरता है