Thursday, February 28, 2013

न दाना है ना आना है
ये भी क्या ज़माना है
सुर है पर अल्फ़ाज़ नही
जैसे कोई तराना है
फकीरी मे भी 'कायल'
एक सुख होता है
जैसे रेगिस्तान मे बदल
ना बरसना है ना आना है
दरिया दिल तो बस एक वो है
बाकी हमने सबकी इंतेहा देखी
लोगों का आना है 
अफ़सोस जताना है जाना है 
न दाना है ना आना है
ये भी क्या ज़माना है

"पूछो ना की हमने क्या क्या देखा,
ये पूछो की हमने क्या न देखा"

Friday, February 22, 2013


अब कहे क्या की किसकी खता थी
और क्या हादसे हो गये,
कभी निकले वो बेवफा
कभी हम बेवफा हो गये
वो छीन लेता है छ्त मुझसे
मुझको आसमान देने के लिए
और मैं रोता रहता हूँ
इन चार दीवारों में अपनी
कुछ और सामान के लिए

मैंने काट दिए पेड़ सारे
कुछ चौड़ी सडकों, तेज़ गाड़ी
कांच के मकान के लिए 
चिड़ियाँ कीट मार दिए
कुछ पेट की आग के लिए
कुछ 'विज्ञान' के लिए 
'सभ्यता' अच्छी बात है 'कायल'
पर इसमें जगह कहाँ है?
 खुले आसमान के लिए
जहाँ के लिए ?
हैं सिर्फ दीवारे ही दीवारें
इंसानों  के लिए

अब कहे क्या की किसकी खता थी
और क्या हादसे हो गये,
कभी वो बेवफा निकले
कभी हम बेवफा हो गये
कुछ शैतानी पलों में इंसान रहे
कुछ इंसानी पलों में शैतान रहे
कभी- कभी  भगवान्  भी रहे
आज फिर अपनी फितरत से परेशां रहे 
मैं उसकी रुबाईय़त पढ़कर भी
उसको न जान पाया हूँ  
कभी ज़बान समझ
न पाया हूँ
कभी इंसान समझ
न पाया हूँ
या अपने अंतर में
न उतर  पाया हूँ



Wednesday, February 06, 2013

मैं कुछ गानों से
कुछ तानों-बानों से
डरने लगा हूँ
हाँ मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ

वो दिन और थे
जब चलता था
बाज़ी शहंशाहों सी 
अब मैं प्यादों सा
चलने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ

ऐसा नहीं की अब मुझे
विश्वास नहीं मार्क्स पर
स्मिथ या और आदर्शों पर
बात बस इतनी है की
मैं इंक़लाब से
चिढने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
मुझे पता है इंसानों में
राम-रहीम बाकी है
चिरागों में  यकीं  की
लौ अभी बाकि हैं 
बात बस इतनी है
फतवों- वनवास से
सिहरने लगा हूँ
 हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ 
आज बढ़ा है पाप तो
हर इंसान के हाथ में
न्याय का तराजू है
बात बस इतनी की
मैं इन आखों में
धधकती आग से
डरने लगा हूँ   
 हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
जानवर खाकर, आदिवासी भगाकर
पेड़ काटकर, पहाड़ खोदकर
हमने तार बनाये है
इन तारों पर लटकती लाशों से
डरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ

 हाँ मैं डरने लगा हूँ
हर बात से जज़्बात से
जीत से हार से
नफरत से, प्यार से

अब  हर बात से
डरने लगा हूँ  
जैसे तस्सवुरों में अपने
क़ैद होने लगा हूँ
कोई उठाता है
तो उसे अलार्म सा
snooze कर देता हूँ
और सोता हूँ
तो सपनो से
उठता हूँ
तो अपनों से
डरने लगा हूँ
अपने ही वजूद से
सिहरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ

'कायल' मियाँ तुम भी अजब इंसान हो
मुनाफ़िक़ हो और फरेब से डरते हो
# मुनाफ़िक़ = hypocrite