जो उठे दिल मे आह आँसू बने
जो आँसू बहते रहे यूँही साहिल बने
जो उठे साहिल गफील सैलाब बने
झुका ज़माना दिल की करवट तले
सैलाब से फिर आह, आँसू, साहिल बने
तबाही का मंज़ार हम कब तक बने!
जो उठे दिल मे आह हँसी बने
कुछ तेरे कुछ मेरे लबों पे सजे
जो गिरे आँसू साहिल न बने
साहिल समंदर बने, गफील न बने
दुनिया मे तबाही के मंज़र बहुत
'कायल' आह तेरी सैलाब न बने
अपनी सिसकियों को बना खूबसूरत इतना
कोई शायर सुने, वाह कह दे
चिराग जले दिन-रात काजल बने
हम जले तिल-तिल 'कायल' बने
गफील = unaware
जो उठे दिल मे आह हँसी बने
ReplyDeleteकुछ तेरे कुछ मेरे लबों पे सजे
superb!..The whole poem
thanx...
ReplyDeletethis was in drafts for 6 months or more.... ur comments motivated me to complete it....
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
ReplyDeleteवाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteshukriya...
ReplyDeleteaccha laga ki aapko accha laga..