Friday, August 12, 2011



यह ज़िंदगी जैसे 'कायल'
नदी के दो किनारे है

कभी हुए दूर यूँ की
सपने भी पराए हैं

फिर मिटे फ़ासले यूँ भी
एक मुक़द्दर दुआएं है

'मेज़ पर बिखरे वो कुछ काग़ज़
मेरी ज़िन्दगी या ख़त पुराने हैं?'


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