Tuesday, January 24, 2012


खुशी मे चुभन क्यूँ है
हैं पथ अंत मे रोशनी
फिर यह अँधेरा क्यू है

ये अंधेरा भी चला जाएगा
होगा पथ अंत मे सवेरा
फिर एक रात के लिए

हो रात को अंधेरा ठीक हैं
क्या दिन से जाएगा या 
रह जाएगा दिन मे रात लिए

कुछ सासों मे तूफान लिए
कुछ आँखों मे अरमान लिए
रह जाएगा दिन मे रात लिए

रात का डर लिए ख्वाब
दिन मे बस जाएगा
जायेगा सच से दूर लिए कहीं

सच ख़त्म हो जाएगा
ख्वाब का सच बाकी
रात का दिन लिए

रात का दिन लिए
घूम रहा हूँ
या दिन की रात

अंतर जान भी लिया
तो क्या फिर से
पहेले की तरह हो पाउँगा

क्षणिक खुशियों मे
क्या डूब पाउँगा
या ख्वाबो की टीस लिए

रह जाउँगा ख्वाबो मे
सवाल लिए, जवाब लिए
अपनी अक़ल-ए-खाक लिए

खुशी मे चुभन लिए
रोशनी मे अंधकार लिए
  चेहरे पर शिकन लिए

सोचता हूँ क्या कभी
उस पंछी-सा उड़ पाउँगा
गली के कुत्ते सा सो पाउँगा

बच्चों सा रो पाउँगा
पानी सा बह पाउँगा
फूलों सा खिल पाउँगा

इस कफस से
तस्सवुरों  से  अपनी 
आजाद हो पाउँगा ?  




No comments:

Post a Comment