खुशी मे चुभन क्यूँ है
हैं पथ अंत मे रोशनी
फिर यह अँधेरा क्यू है
ये अंधेरा भी चला जाएगा
होगा पथ अंत मे सवेरा
फिर एक रात के लिए
हो रात को अंधेरा ठीक हैं
क्या दिन से जाएगा या
रह जाएगा दिन मे रात लिए
कुछ सासों मे तूफान लिए
कुछ आँखों मे अरमान लिए
रह जाएगा दिन मे रात लिए
रात का डर लिए ख्वाब
दिन मे बस जाएगा
जायेगा सच से दूर लिए कहीं
सच ख़त्म हो जाएगा
ख्वाब का सच बाकी
रात का दिन लिए
रात का दिन लिए
घूम रहा हूँ
या दिन की रात
अंतर जान भी लिया
तो क्या फिर से
पहेले की तरह हो पाउँगा
क्षणिक खुशियों मे
क्या डूब पाउँगा
या ख्वाबो की टीस लिए
रह जाउँगा ख्वाबो मे
सवाल लिए, जवाब लिए
अपनी अक़ल-ए-खाक लिए
खुशी मे चुभन लिए
रोशनी मे अंधकार लिए
चेहरे पर शिकन लिए
सोचता हूँ क्या कभी
उस पंछी-सा उड़ पाउँगा
गली के कुत्ते सा सो पाउँगा
बच्चों सा रो पाउँगा
पानी सा बह पाउँगा
फूलों सा खिल पाउँगा
इस कफस से
तस्सवुरों से अपनी
आजाद हो पाउँगा ?
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