Sunday, July 31, 2011

जो उठे दिल मे आह आँसू बने
जो आँसू बहते रहे यूँही साहिल बने

जो उठे साहिल गफील सैलाब बने
झुका ज़माना दिल की करवट तले

सैलाब से फिर आह, आँसू, साहिल बने
तबाही का मंज़ार हम कब तक बने!

जो उठे दिल मे आह हँसी बने
कुछ तेरे कुछ मेरे लबों पे सजे

जो गिरे आँसू साहिल न बने
साहिल समंदर बने, गफील न बने

दुनिया मे तबाही के मंज़र बहुत
'कायल' आह तेरी सैलाब न बने

अपनी सिसकियों को बना खूबसूरत इतना
कोई शायर सुने, वाह कह दे

चिराग जले दिन-रात काजल बने
हम जले तिल-तिल 'कायल' बने



गफील = unaware
उनकी धूप मे खिले से
अपने कीचड़ मे सने से
सामने उनके कमल से
जल मे जले से