Saturday, November 24, 2012

लाश

अब तुम्हारे और मेरे बीच
एक दीवार है
दीवार के एक और हो तुम
दूजी ओर मैं और एक लाश
लाश हमारे रिश्ते की
जिसके साथ मैं सोने जाता हूँ
जिसके साथ सुबह
आप को बिस्तर पर पाता हूँ
जिसे मैं ढो रहा हूँ
हर जगह हर वक़्त
अब इस के वज़न से
मेरे ज़हन पर
नासूर हो गये है
और है अंदर एक आग
कहीं यह आग
इस लाश को जाला ना डाले
और पहुँच जाए तुम्हारे पास
दीवार के उस पार 
तुम्हारी दुनिया भी
मेरी तरह ज़ुलस ना जाए
इस लिए सोच रहा हूँ
की अब इस लाश को
दफ़नाया जाए
इस पर खुशियों का
एक पत्थर लगाया जाए
कभी इस पर फूल
कभी एक आँसू बहाया जाए
और फिर सब कुछ भूलकर
इस कब्र से,
ज़िंदगी! वापस लौटा जाए

चलती भीढ़ को देख के
अक्सार सोचा करता हूँ
अकेला, ठहरे पानी सा
चुनिंदा हू? गंदा हू?