बड़ा जटिल है
जितना बाहर है
उससे ज़्यादा अंदर
कड़ी एक तोड़
कर इसकी, जैसे
अंदर जाता हूँ
कई नयी कड़ियों को
जुड़ा हुआ पाता हुँ
चक्रव्यूह को जटिल
कई गुना पाता हूँ
आगे बढ़ने का भानजटिलता मे खो हो जाता है
बस रह जाता है तो
गहरा एहसास रह जाता है
वेग बाहर निकल जाने का
मुझे ओर अन्दर ले जाता है
जैसे ही करता हूँ मैं एक योद्धा परहास्त
योद्धाओ का समूह नया आ जाता है
युद्ध का नियम कोई बाकी न
कुरुक्षेत्र मे रह जाता है
मिटती सीमाए यूँ फिर
कुरुक्षेत्र जीवन मे
युद्ध जीवन मे अंतर
कोई न रह जाता है
आक्रमण करता हूँ खुद
घाव गहरा पाता हूँ
पर चक्रव्यूह अब यह
तोड़ नही पाता हूँ
क्यूंकी यह अब सबके अंदर है
और मैं अभिमन्यु की तरह विवश
तुम्हारे जीवन मे घुस सकता हूँ
निकल नही सकता
विजेताओ की पृष्ठभूमि बन सकता हूँ
विजेता नही बन सकता खुद एक चक्रव्यूह बन सकता हूँ
बाहर नही निकल सकता
No comments:
Post a Comment