Thursday, June 07, 2012

पहले तुम जलाते हो
रोशनी करने के लिए
अपने ज़हन मे सच
की तलाश मे कही

हम जलते रहते है
आग मे अपनी
ढूँढते हो सुकून
मेरी आह मे कही

जब खाक हो चुके
तो जूस्तजू भी है
क्या जला क्या नही
क्या रहा क्या नही

अगर उपर उठ जाए
इस तमाशे से
तो उन्हे तकलीफ़ है
की दिल मेरा क्यूँ अब

पहले की तरह बहलाते नही
क्यू हर आ पर मेरी
दौड़े चले आते नही
सहम जाते नही

पहले की तरह क्यू
अब प्यार जताते नही
क्यू तुम मुझे अब सताते नही 
मेरी बाहों मे क्यू अब समाते नही

फिर भी उनकी यह अदा
की हम सिर्फ़ दोस्त है
बात उनकी मुझे कभी
यह समझ आती नही

आती है हमे भी आदाएँ कई
पर यूँ सॉफ झूठ बोल कर
मासूम हो जाना, अदा ये
हमे आती नही, सताती नही

बात उनकी मुझे कभी
यह समझ आती नही

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