मैं कुछ गानों से
कुछ तानों-बानों से
डरने लगा हूँ
हाँ मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
वो दिन और थे
जब चलता था
बाज़ी शहंशाहों सी
अब मैं प्यादों सा
चलने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
ऐसा नहीं की अब मुझे
विश्वास नहीं मार्क्स पर
स्मिथ या और आदर्शों पर
बात बस इतनी है की
मैं इंक़लाब से
चिढने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
मुझे पता है इंसानों में
राम-रहीम बाकी है
चिरागों में यकीं की
लौ अभी बाकि हैं
बात बस इतनी है
फतवों- वनवास से
सिहरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
आज बढ़ा है पाप तो
हर इंसान के हाथ में
न्याय का तराजू है
बात बस इतनी की
मैं इन आखों में
धधकती आग से
डरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
जानवर खाकर, आदिवासी भगाकर
पेड़ काटकर, पहाड़ खोदकर
हमने तार बनाये है
इन तारों पर लटकती लाशों से
डरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
हाँ मैं डरने लगा हूँ
हर बात से जज़्बात से
जीत से हार से
नफरत से, प्यार से
अब हर बात से
डरने लगा हूँ
जैसे तस्सवुरों में अपने
क़ैद होने लगा हूँ
कोई उठाता है
तो उसे अलार्म सा
snooze कर देता हूँ
और सोता हूँ
तो सपनो से
उठता हूँ
तो अपनों से
डरने लगा हूँ
अपने ही वजूद से
सिहरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
'कायल' मियाँ तुम भी अजब इंसान हो
मुनाफ़िक़ हो और फरेब से डरते हो
# मुनाफ़िक़ = hypocrite
कुछ तानों-बानों से
डरने लगा हूँ
हाँ मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
वो दिन और थे
जब चलता था
बाज़ी शहंशाहों सी
अब मैं प्यादों सा
चलने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
ऐसा नहीं की अब मुझे
विश्वास नहीं मार्क्स पर
स्मिथ या और आदर्शों पर
बात बस इतनी है की
मैं इंक़लाब से
चिढने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
मुझे पता है इंसानों में
राम-रहीम बाकी है
चिरागों में यकीं की
लौ अभी बाकि हैं
बात बस इतनी है
फतवों- वनवास से
सिहरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
आज बढ़ा है पाप तो
हर इंसान के हाथ में
न्याय का तराजू है
बात बस इतनी की
मैं इन आखों में
धधकती आग से
डरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
जानवर खाकर, आदिवासी भगाकर
पेड़ काटकर, पहाड़ खोदकर
हमने तार बनाये है
इन तारों पर लटकती लाशों से
डरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
हाँ मैं डरने लगा हूँ
हर बात से जज़्बात से
जीत से हार से
नफरत से, प्यार से
अब हर बात से
डरने लगा हूँ
जैसे तस्सवुरों में अपने
क़ैद होने लगा हूँ
कोई उठाता है
तो उसे अलार्म सा
snooze कर देता हूँ
और सोता हूँ
तो सपनो से
उठता हूँ
तो अपनों से
डरने लगा हूँ
अपने ही वजूद से
सिहरने लगा हूँ
हाँ, मैं प्यार करने से
डरने लगा हूँ
'कायल' मियाँ तुम भी अजब इंसान हो
मुनाफ़िक़ हो और फरेब से डरते हो
# मुनाफ़िक़ = hypocrite
Bahut pasand aayi tumhari yeh kavita...many lines were superb. But mujhe laga ki usage of 'alarm' and 'snooze' sort of broke the perfect hindi prose sequence (even if it rhymed in well)towards the end. Laga ki jaise kavita thodi si dilute ho gayi.
ReplyDeleteBut perhaps your other readers might appreciate this usage.