Thursday, February 28, 2013

न दाना है ना आना है
ये भी क्या ज़माना है
सुर है पर अल्फ़ाज़ नही
जैसे कोई तराना है
फकीरी मे भी 'कायल'
एक सुख होता है
जैसे रेगिस्तान मे बदल
ना बरसना है ना आना है
दरिया दिल तो बस एक वो है
बाकी हमने सबकी इंतेहा देखी
लोगों का आना है 
अफ़सोस जताना है जाना है 
न दाना है ना आना है
ये भी क्या ज़माना है

"पूछो ना की हमने क्या क्या देखा,
ये पूछो की हमने क्या न देखा"

No comments:

Post a Comment