Sunday, May 11, 2008

ग़ालिब की कलम से ...
"रगों में दौरते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख से ही न टपका तों फिर लहू क्या है "

"जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्त -जू क्या है"

"हुई मुद्दत की ग़ालिब मर गया पर याद आता है,
वो हर एक बात पे कहना, की यूं होता तों क्या होता"

"हमको मालूम हैं जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल को खुश रखने मैं ग़ालिब यह ख्याल अच्छा हैं "

"हमको उनसे थी वफ़ा की उम्मीद ,
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है "

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