Friday, January 06, 2012

अब तुझसे मिलने की वो चाहत ना रही..
तू तो रही पर तेरी आदत ना रही...

वो मंज़र भी देखा हैं
इन चौराहों- गलियों ने

भटकते थे यही, इंतेज़ार मे
बेक़ारारी  लिए आँखों मे

बेक़ारारी जिसमे गुमनाम बने
अब वो लाचारी ना रही

अब तुझसे मिलने की वो चाहत ना रही
तू तो रही पर तेरी आदत ना रही

एक ऐसा भी वक़्त देखा है
इन आँखों ने 'कायल'

की तेरी एक आह पर
हम सिहर उठते थे

 जो कोई देखे तुझे
खाक हम हो उठते थे

तुझे भीड़ मे बचाकर दुनिया की
अपनी बाहों मे हम रखते थे

प्यार मे अब वो खुमारी कहाँ रही
तू तो रही पर तेरी आदत ना रही

तू ख्वाब, हक़ीक़त या खुदा
अब तो मेरे ग़ज़ल का शेर रही

वक़्त का कसूर कहे, किस्मत
फलसफा या मर्ज़ी खुदा की

किसको पता है रगिस्तान की तारिख 
उसके दामन मे, तपती रेत रही

जब आया कोई पास तो अहसास हुआ
दिन मे गर्मी रही, रात को ठंडक रही

अब तुझसे मिलने की वो चाहत ना रही..
तू तो रही पर तेरी आदत ना रही...

'हम डूब के कर भी लेते आग का दरिया पार
पर दरिया मे अब डूबने वाली गहराई ना रही'

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