सुबह की तलाश में खो गयी रात मेरी
मुझे रोशनी की तलाश आज भी हैं
मैने की थी सूरज से वफ़ा
दिल मेरा खाक आज भी हैं
वो पूछते है मेरी उदासी का सबब
प्यार उमीदों का मोहताज आज भी है
मेरी ज़िंदगी मे मौत, मौत मे ज़िंदगी
वजूद, ख्वाहिशों का पुतला आज भी है
उसने कहा जो हाथ पकड़ के
तुम्हारे आँखों मे हवस दिखती है
हममे भी लगा था
हम नीच वाक़ई है
हर आहट, आवाज़, नज़र, बू
छूने से सिहर उठता है
क्या इंसान मे
खुदा वाक़ई है
मैं क्या दूं सलाह
मैं नादान इंसान
पढ़ लो मेरी आँखों मे
तेरा अक्स साफ ही है
'हम आम इंसान है 'क़ायल' फलसफा न कह
घुट घुटकर जीते है जी जी कर घुटते है'
No comments:
Post a Comment