हर दर दरवाज़ा नहीं होता
होती भी है हर रोज़ यूँ सुबह
कुछ घरों में कभी उजाला नहीं होता
कहती है झूठ सारी किताबे विज्ञान
की सुनने के लिए कान चाहिए
फिर क्यूँ इन चीखों का निपटारा नहीं होता
हम तो वो लोग है 'कायल'
जिन्हें नफरत है गुनाहों से
जब तक क़त्ल अपने कुचे में नहीं होता
सच और ज़मुरिअत अच्छी बातें है
पर इन बातों से चूल्हें नहीं जलते
घर जले, तो बरसातों में गुज़ारा नहीं होता
अगर निकला हूँ सडको पर तो इसलिए
की मेरे घर- आत्मा में गोलियों के सुराख़ है
रोटी- इज्ज़त होती, इंक़लाबों पर निसार नहीं होता
आम इंसान हूँ मुझसे बचकर रहना
मेरी वफाई- बेवफाई में 'कायल'
होता है फर्क, ज्यादा फासला नहीं होता
मुझे सूरज की इच्छा नहीं
एक चिंगारी दे दो
कौन कहता है चिंगारियों से उजाला नहीं होता
हर दर दरवाज़ा नहीं होता
होती भी है हर रोज़ यूँ सुबह
कुछ घरों में कभी उजाला नहीं होता
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