I
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक
मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक
तूफ़ानो का आना और बात है
तूफानियत का छाना और बात है
तूफ़ानो मे दीपक जलना और बात है
उसके संघर्ष मे इल्हाम पाना और बात है
पर बुझते दिए को देख
कौन खुश रह पाया है देर तक
मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक
उसे छोड़कर, भुलाकर, यादों को सुलाकर
चल दिए हम क़दम दो क़दम
ज़ख़्मों के निशान ज़हन मे क़ैद किए
चल दिए हम क़दम दो क़दम
पर बोझिल मन से
कौन मैदान मार पाया है देर तक
मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक
II
पंछी की आँख मे ब्राम्हांड देखना आसान है
मुख मे ब्राम्हांड दिखाकर राधा रिझाना और बात है
मोह, अहम, क्रोध मे प्रतिग्या करना आसान है
धर्मार्थ प्रतिग्या तोड़ पाना और बात है
ज़िंदगी को महाभारत करना है आसान
उस पर हँस पाना और बात है
मंज़र-ए- उदासी, मे मन भारी होना आसान है
गम-खुशी का पार पाना और बात है
पा लो की दुनिया मे मंज़िलो की कमी कहा
पर मन का चैन पाना और बात है
समर मे जीत जाना आसान है
मोक्ष की राह निकालना और बात है
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक
मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक
तूफ़ानो का आना और बात है
तूफानियत का छाना और बात है
तूफ़ानो मे दीपक जलना और बात है
उसके संघर्ष मे इल्हाम पाना और बात है
पर बुझते दिए को देख
कौन खुश रह पाया है देर तक
मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक
उसे छोड़कर, भुलाकर, यादों को सुलाकर
चल दिए हम क़दम दो क़दम
ज़ख़्मों के निशान ज़हन मे क़ैद किए
चल दिए हम क़दम दो क़दम
पर बोझिल मन से
कौन मैदान मार पाया है देर तक
मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक
II
पंछी की आँख मे ब्राम्हांड देखना आसान है
मुख मे ब्राम्हांड दिखाकर राधा रिझाना और बात है
मोह, अहम, क्रोध मे प्रतिग्या करना आसान है
धर्मार्थ प्रतिग्या तोड़ पाना और बात है
ज़िंदगी को महाभारत करना है आसान
उस पर हँस पाना और बात है
मंज़र-ए- उदासी, मे मन भारी होना आसान है
गम-खुशी का पार पाना और बात है
पा लो की दुनिया मे मंज़िलो की कमी कहा
पर मन का चैन पाना और बात है
समर मे जीत जाना आसान है
मोक्ष की राह निकालना और बात है
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