Thursday, April 26, 2012

है निराशा की छाया अंधेरी 
मन दुर्बल, साँसे हो ठंडी
मस्तिष्क आशंकित
बर्बादियों का
यही पल है यही पल है
इसे संझोलो इसे संझोलो
परीक्षा के अधिकारी
विपदाओ के उत्तराधिकारी
हे दुर्लभ वीर
जागो -उठो, अंत: टटोलो
साहस के तिनके बटोरो
तिनको को बुनकर
एक नौका बनाओ
भुला-बिसरा कोई गीत गाओ
अपने सोए पौरुष को जगाओ
तूफ़ानो को फिर बाहों मे भरकर
आँखों मे अपने अग्नि जलाकर
विपदाओ पर अपनी  मुस्कुराकर 
विपदाओ पर अपनी  मुस्कुराकर
नौका से अपनी
कर दो चढ़ाई
चिर जाए तूफान
या नौका तुम्हारी
अंधेरा मिटेगा
अंत: मे सदा ही
इस नपुंसकता से
वीर पार पाओ
जागो उठो अब
वीर पार पाओ
जीवन पर कदाचित्
वश तेरा नही है
पर मृत्यु तो अपनी
वांछित वीर पाओ
छाती है विपदाए
मनुज पर अक्सर
आज यूँ करो तुम 
विपदाओ पर छाओ
आज यूँ करो तुम 
विपदाओ पर छाओ 
विपदाओ पर
अपनी  मुस्कुराओ 
विपदाओ पर
अपनी  मुस्कुराओ
भुला-बिसरा कोई गीत गाओ
अपने सोए पौरुष को जगाओ
भुला-बिसरा कोई गीत गाओ
अपने सोए पौरुष को जगाओ


Saturday, April 21, 2012



गुनाह भी तू ही
गुनहगार भी तू  ही
सिपहसालार भी तू ही
गिरफ्तार भी तू ही

क़ातिल भी तू ही
क़ाज़ी भी तू ही
जल्लाद भी तू ही
हलाल भी तू ही

आग भी तू ही
जला भी तू ही
धुआ भी तू ही
राख भी तू ही

पानी भी तू ही
गला भी तू ही
बहा भी तू ही
रहा भी तू ही

उसे मत देना दोष
वो तो है निर्गुण
क़ातिल-क़ाज़ी आग-पानी
ये है मेरे गुण



कौन गिरधर कौन राधा
समा लो समा लो समा लो मुझे

कौन लौ कौन परवाना
जला लो जला लो जला लो मुझे

कौन सागर कौन लहर
बहा लो बहा लो बहा लो मुझे

कौन गान कौन गायक
गा लो गा लो गा लो मुझे

कौन हवा कौन तिन्का
उड़ा लो उड़ा लो उड़ा लो मुझे

कौन क़ातिल कौन मज़लूम
मार दो मार दो मार दो मुझे

एक बार यूँ लगाओ गले प्रिये
तार दो तार दो तार दो मुझे

मेरी हार जीत तुम्हारी
हरा लो हरा लो हरा लो मुझे
                     I
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक
मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक

तूफ़ानो का आना और बात है
तूफानियत का छाना और बात है

तूफ़ानो मे दीपक जलना और बात है
उसके संघर्ष मे इल्हाम पाना और बात है

पर बुझते दिए को देख
कौन खुश रह पाया है देर तक

मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक

उसे छोड़कर, भुलाकर, यादों को सुलाकर
चल दिए हम क़दम दो क़दम

ज़ख़्मों के निशान ज़हन मे क़ैद किए
चल दिए हम क़दम दो क़दम

पर बोझिल मन से
कौन मैदान मार पाया है देर तक

मंज़र-ए-उदासी, कौन खुश रह पाया है देर तक
वो उसे रुलाकर, हँस न पाया देर तक

                         II
पंछी की आँख मे ब्राम्‍हांड देखना आसान है
मुख मे ब्राम्‍हांड दिखाकर राधा रिझाना और बात है

मोह, अहम, क्रोध मे प्रतिग्या करना आसान है
धर्मार्थ प्रतिग्या तोड़ पाना और बात है

ज़िंदगी को महाभारत करना है आसान
उस पर हँस पाना और बात है

मंज़र-ए- उदासी, मे मन भारी होना आसान है
गम-खुशी का पार पाना और बात है

पा लो की दुनिया मे मंज़िलो की कमी कहा
पर मन का चैन पाना और बात है

समर मे  जीत जाना आसान है
मोक्ष की राह निकालना और बात है

Wednesday, April 18, 2012

हर दर दरवाज़ा नहीं होता 
होती  भी है हर रोज़ यूँ सुबह
कुछ घरों में कभी उजाला नहीं होता  

कहती है झूठ सारी किताबे विज्ञान
की सुनने के लिए कान चाहिए
फिर क्यूँ इन चीखों का निपटारा नहीं होता 

हम तो  वो लोग है  'कायल'
जिन्हें नफरत है गुनाहों से 
जब तक क़त्ल अपने कुचे में नहीं होता 

सच और ज़मुरिअत अच्छी बातें है 
पर इन बातों से चूल्हें नहीं जलते
घर जले, तो बरसातों में गुज़ारा नहीं होता 
   
अगर निकला हूँ सडको पर तो इसलिए 
की मेरे घर- आत्मा में गोलियों के सुराख़ है 
रोटी- इज्ज़त होती, इंक़लाबों पर निसार नहीं होता   

आम इंसान हूँ मुझसे बचकर रहना 
मेरी वफाई- बेवफाई में 'कायल'
होता है फर्क,  ज्यादा फासला नहीं होता 

मुझे सूरज की इच्छा नहीं 
एक चिंगारी दे दो 
कौन कहता है चिंगारियों से उजाला नहीं होता

हर दर दरवाज़ा नहीं होता 
होती  भी है हर रोज़ यूँ सुबह
कुछ घरों में कभी उजाला नहीं होता 

Friday, April 13, 2012

तुम अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से
मुझे बहला नही सकते, नही सकते
बहला सकते हो, बहला सकते हो 
किसी सोलह साल की लड़की को
"मैं तुमसे प्यार करता हूँ" कहकर
पुराना चावल हूँ, गला नही सकते
तुम अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से
मुझे बहला नही सकते, नही सकते

हंसकर- इठलाकर पास आकर दूर जाकर
आँखें मिलकर चुराकर भुलाकर जलाकर
बहला लो बहला लो, अपना मन 
मुझको अब तुम फुसला नही सकते
 लूट लो लूट लो लूट लो तन-ज़ेहन
मन पर हक, लेकिन अब जता  नहीं सकते  

तुम अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से
मुझे बहला नही सकते, नही सकते

मुझे जीतना चाहते हो तो लाओ
अरमान पूरे करना हैं तो लाओ
तो लाओ वो ज़ुरियो से झाँकति
माँ की मुस्कान
तो लाओ वो बहस-लड़ाई मे गूँजता
बहना का लाड़
तो लाओ वो डाँट  से रिस्ता
पिता का दुलार
तो लाओ वो लाठी टेककर चलती
नानी के नुस्खे
क्या ला सकती हो इनमे से
एक भी हुनर?
क्या ला सकती हो इनमे से
एक भी हुनर?

जाओ तुम्हारे बस की नही
रहने दो, रहने दो, रहने दो
'कायल' गिरे है कुछ दाम कुछ बाज़ार
पर इतने सस्ते में हम आ नहीं सकते
लूट लो लूट लो लूट लो चाहे
की हम देने के लिए मशहूर है
मन पर हक, लेकिन अब जता  नहीं सकते
मन पर हक, लेकिन अब जता  नहीं सकते   

तुम अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से
मुझे बहला नही सकते, नही सकते